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नारी विमर्श >> पंडवानी और तीजन बाई

पंडवानी और तीजन बाई

सरला शर्मा

प्रकाशक : वैभव प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :104
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5969
आईएसबीएन :81-89244-44-2

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प्रस्तुत है पुस्तक पंडवानी और तीजन बाई......

Pandvani Aur Teejan Bai

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश


जिनगी के रद्दा मं कतका कन खंचवा-डिपरा, खाई-खड्डा, नदिया-नरवा, बन-पहार नांहके बर परथे.....तब जाके कोनों एक ठौर म चिटिक सुरता लेहे के मौका मिलथे.........। पच्चास बरिस सरपट दौड़त-भागत हंफर दयेंव त छोरकुन थिराये बर गुनत रहेंव के पाछू लहुट के निहारे के मन करिस। अइसे लागिस के ठौका मौका पायेंव....रे..भाई।

येई मौका ल सकारथ करिस हावय सरला बहिनी हर........काबर के ये किताब ल लिखिस हावय।

बुधियार पढ़इया मन ! ये किताब मं मोरे मनसुभा-मन बगरे हावय, मोरे बिचारमन परगट होये हवाय, जौन देखेंव, सुनेंव, गुनेंव, सहेंव, तौने ल सरला बहिनी हर भाखा देहे हावय।
धीर धर के मोर गोठ-बात ल सुनिस फेर अपनो हर गुनिस......त फेर लिखिस........ओला असीसत हांवव के ओकर कलम हर बिन थके, बिन बिलमें जियत भर लिखत, चलय।
पंडवानी हर दिनों बगरय, हमर देस के सभ्यता, संस्कृति के चिन्हारी बनय भगवान् करा हांथ जोर येई बिनती करत हांवव अऊ जियत भर पंडवानी गाये सकंव ये बरदान मांगत हंव.......।
‘‘बोल दो बृन्दावन बिहारी लाल की जय।’’

डॉ. तीजन बाई
पद्मश्री, पद्मभूषण
महिला नौ-रत्न, कलाशिरोमणि
भिलाई (छत्तीसगढ़)

सहज-सरल तीजनबाई


तीजन बाई की इच्छा थी कि वह भी भिलाई इस्पात संयंत्र में नौकरी करे। छत्तीसगढ़ी लोककला महोत्सव में कार्यक्रम की प्रस्तुति के लिये वह जब भी आती थी तो कहती थी ‘‘महूं ल चपरासिन-उपरासिन के नौकरी देवा देते साहब, त बने निश्चिन्त होके पंडवानी गातेंव-रोजी रोटी के फिकर नई रहितिस.....।’’
(मुझे भी नौकरी दिला देते साहब चपरासिन की ही सही तो निश्चिन्त होके पाण्डवानी गाती-रोजी रोटी की चिन्ता नहीं रहती)
मैं उससे कहता कि रोजगार दफ्तर में नाम रजिस्टर करा लो और जब साक्षात्कार के लिए बुलावा हो तब बता देना; इण्टरव्यू लेने वाले परिचित अधिकारियों को मैं अपनी ओर से सिफारिश कर दूंगा। प्राय: प्रतिवर्ष उसका यही आग्रह होता था और मेरा यही उत्तर।

मनुष्य के ग्रह नक्षत्र जब प्रबल होते हैं तब बहुत से कार्य स्वत: सिद्ध हो जाते हैं संयोग से सन् 1984 में श्री के.आर. संगमेश्वरम् प्रबंध निदेशक के रूप में भिलाई आये। उन्हें जब छत्तीसगढ़ लोककला महोत्सव की लोकप्रियता की जानकारी हुई तो उन्होंने मुझसे मिलना चाहा। संयोग से नगर सेवा विभाग के अधिकारियों से मिलने के लिये वे मुख्य नगर प्रशासक के कार्यालय में आये। सभी विभाग-प्रमुखों को बुलाया गया। परिचय के दौरान मेरा परिचय जानने के बाद उन्होंने पूछा कि ‘‘आप छत्तीसगढ़ लोककला महोत्सव का आयोजन कब से कर रहे हैं ?’’
मैंने बताया सन् 1976 से......उन्होंने फिर पूछा ‘‘कहां और कितने दिन......?’’ मैंने उत्तर दिया ‘‘सर भिलाई के पंत स्टेडियम में प्रतिवर्ष 5 दिन......।’’ उन्होंने कहा कि राजहरा, नंदिनी और हिर्री भी हमारा टाउनशिप है वहां आप यह आयोजन क्यों नहीं करते ?’’

मैंने कहा ‘‘सह प्रबंधन का आदेश होने पर कर सकता हूँ। उनके आदेश से दो दिन का कार्यक्रम राजहरा और दो दिन का कार्यक्रम नंदनी तथा हिर्री में प्रतिवर्ष होना तय हुआ। उन दिनों स्व. शंकर गुहा नियोगी के भय से कोई प्रबंधन निदेशक राजहरा नहीं जाते थे लेकिन श्री संगमेश्वरन सपत्नीक वहां गये, लोककला महोत्सव देखा और प्रसन्न होकर मुझे बधाइयां भी दीं। इसके बाद उन्होंने कलाकारों से मिलना चाहा। ग्रीन रूम में सभी कलाकारों से भेंट किये, बधाई दिये। तीजन बाई को बधाई देते समय मुझे सूझ गया और मुंह से निकल गया कि ‘‘सर तीजन बाई को भिलाई इस्पात संयंत्र की नौकरी में रख लेना चाहिये।’’

‘‘Sir we wanted to appoint Teejan Bai in Bhilai Steel Plant She will be an asset for us.’’
संगमेश्वरम् साहब ने इन शब्दों को सुनकर मेरी ओर गौर से देखा.....। मुझे लगा कि मेरी नौकरी तो गई क्योंकि प्रबंधक पद के अधिकारी का प्रबंध निदेशक से सीधे इस प्रकार प्रस्ताव करना नियम विरुद्ध था लेकिन श्री संगमेश्वरम् अत्यन्त उदार हृदयी थे उन्होंने प्रच्युत्तर में कहा-‘‘Than what is their……Employ her’’
मैं प्रसन्न हुआ और तीजन बाई को मैंने कहा कि नौकरी दफ्तर में रजिस्टर करा लो तथा एक आवेदन पत्र प्रस्तुत करो। तदनुसार तीजन बाई को नौकरी मिल गई और उसे मेरे ही विभाग में भेज दिया गया।
तीजन बाई पढ़ी लिखी तो थी नहीं इसलिये अपने मन से ही कार्यालय का कुछ काम कर देती जैसे फाइल लाना ले जाना, पानी पिलाना लेकिन ये सारे काम वो अपने मन से करती थी। इसके लिए उसे कोई निर्देश नहीं दिया जाता था।

तीजन बाई देश के अनेक भूभागों के अलावा विदेशों में भी आमंत्रित होने लगी फ्रांस से ही उसकी कला की चर्चा सर्वत्र होने लगी।

कुछ लोगों ने मुख्य नगर प्रशासक, महाप्रबंधक तथा प्रबंध निदेशक से यह शिकायत कर दी कि दानेश्वर शर्मा तीजन बाई से पानी पिलाने का, चाय लाने का और भी इसी प्रकार का कुछ काम लेते हैं जो कि किसी कलाकार से नहीं लेना चाहिये। मेरे बॉस मुख्य नगर प्रशासक ने कहा कि प्रबंध निदेशक महोदय को इस प्रकार की शिकायत मिली है अत: तीजन बाई से पानी या चाय पिलाने का काम लेना चाहिये।

मैंने तीजन बाई से स्पष्ट रूप से कह दिया कि वह स्वेच्छा से भी यह काम मत करें फिर भी वह आदतन काम कर देती थी। मेरे आदेश की अवहेलना कर देती थी। एक दिन दूरदर्शन और आकाशवाणी के केन्द्र निदेशक मेरे कार्यालय में आये उन्हें घण्टे भर बाद प्रबंध निदेशक संगमेश्वरम से मिलना था। दोनों अधिकारियों को बैठने के बाद मैंने घण्टी बजाई....तीजन बाई हाजिर हो गई। मैंने उससे चपरासी को भेजने को कहा वह बोली ‘‘आज ओहर आये नइये...।’’ (आज वो आया नहीं है।) मैं चुप रह गया। तत्काल बाद तीजन बाई.....तीन गिलास पानी लेकर आ गई जैसे ही उसने टेबल पर पानी रखा। आकाशवाणी के निदेशक ने मुझसे पूछा कि ‘‘ये तीजन बाई ही है न......?’’ मेरे हां कहने पर उन्होंने उसे बैठने को कहा लेकिन तीजन बाई नहीं बैठी खड़ी ही रही...। दोनों निदेशकों से बातें करने लगी थोड़ी देर बाद वे लोग चले गये। मैंने तीजन बाई को बुलाया और उससे कहा ‘‘तुम्हें पानी लाने के लिए मैं मना कर चुका हूँ उसके बावजूद आज तुम पानी लाई। अभी ये दोनों केन्द्र निदेशक एम.डी. के पास जा रहे हैं।’’

श्री संगमेश्वरम् साहब की आदत है कि वे किसी भी आगन्तुक से दो बातें पूछते थे, पहला ‘‘आपने कारखाना देखा है या नहीं......यदि नहीं तो जरूर देखिये........दूसरा....अमुक साहित्यकार, संगीतकार, कलाकार, खिलाड़ी जो हमारे संयंत्र में काम करते हैं जानते हैं कि नहीं.......?’’ मैंने कहा इससे तुम्हारा नाम भी आवेगा तीजन बाई और वे अधिकारी उन्हें बतायेंगे कि......हाँ....हम दानेश्वर शर्मा के कक्ष में गये थे वहां तीजन बाई ने हमें पानी पिलाया। ऐसा लगता है कि तीजन बाई कि मेरी नौकरी तो गई क्योंकि प्रबंध निदेशक महोदय मुझे पहले ही निर्देश दे चुके हैं कि तीजन बाई से पानी मत पिलवाना। तुम कहने से मानती नहीं हो इसलिए इससे पहले की मेरी नौकरी जाये मैं तुम्हारी नौकरी समाप्त करता हूँ। तुम तो दैनिक वेतन भोगी हो अत: मुझको अधिकार है, कल से तुम नौकरी में मत आना.....।’’

मेरी बातों को सुनकर तीजन बाई ने उपेक्षाकृत रूप से सिर हिला दिया मैंने फिर कहा, ‘‘मैं गंभीरता से बोल कहा हूँ सिर मत हिलाओ.....।’’
इस पर तीजन बाई ने जवाब दिया-‘‘एम.डी. साहब काहत हे त कहान दे.....हम दुवारी मं कोनो आही त हम.......पियासे ल एक एक गिलास पानी नई देबो....धिक्कार हे का ?’’ (एम.डी. साहब कहते हैं तो कहने दो हमारे द्वार पर कोई आये तो हम प्यासे को एक गिलास पानी नहीं देंगे..........धिक्कार बोलने से ही हो जायेगा क्या ?)
इतना कहकर वो मेरे कमरे से बाहर चली गई। मैंने तुरन्त इस घटना और तीजन बाई के शब्दों को अपने अधिकारी मुख्य नगर प्रशासक को बता दिया। इसके बाद मुझे तीजन बाई के पानी पिलाने संबंधी कोई कोई हिदायत नहीं मिली।

तीजन बाई अपने उच्च विचारों के कारण अपनी सरलता के कारण मेरी दृष्टि में और ऊँची उठ गई।

‘पंडवानी साधिका’ ‘तीजन बाई’ को पाठकों का स्नेह मिले एवं लेखिका सरला शर्मा को सरस्वती का आशीर्वाद।

एम.383, पद्मनाभपर ढर्ग

प्राक्कथन

सुधि पाठक !

‘पंडवानी और तीजन बाई’ आपको सौंपते हुये मुझे अतीव प्रसन्नता हो रही है।
पद्मश्री, पद्यभूषण, अप्रतिम पंडवानी गायिका डा. तीजन बाई के अनुभवों, विचारों, उपलब्धियों और मान्यताओं को उन्हीं के मार्गदर्शन में मैंने भाषा दी है, लिखा है। पारंपरिक उपन्यासों में एक नायक, एक नायिका के साथ कथानक को आगे बढ़ाने हेतु सहनायक, सहनायिकाओं की अवधारणा की जाती है। पार्श्ववर्ती घटनाओं, चरित्रों का चित्रण किया जाता है। यह कृति कुछ भिन्नता लिये हुये है।

इसमें सर्वतोभावेन अवलंबनहीन निर्धन बालिका तीजन की विजय-यात्रा वर्णित है अत: इसे स्वयंसिद्ध तीजन गाथा कह सकते हैं। इस कृति की एकच्छत्र नायिका स्वयं तीजन बाई ही है उनके सहयोग के बिना इसकी रचना संभव ही नहीं थी एतदर्थ मैं हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करती हूँ।


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